उधार
क़र्ज़ मैंने कभी लिया नहीं I
पढ़ा था-
करना चाहिए धरती का क़र्ज़ अदा
करो देश का क़र्ज़ अदा
माँ का क़र्ज़ चुकाया नहीं जा सकता
परिवार के कर्जदार हैं हम
दोस्तों का क़र्ज़ है हम पर
जिस किसी ने दिया तिनके का सहारा
कहीं कभी
जिसने भी ली खोज-खबर
पूछा हाल
बैठने दिया अपने पास
की दो बात
क़र्ज़ है उन सब का हम पर I
यह सब जान कर भी
नहीं जान पाया
कैसी होती है
क़र्ज़ न अदा कर पाने की तड़प
क्योंकि
क़र्ज़ माँगा ही कहाँ था मैंने
लिया ही नहीं मैंने कभी
किसी से उधार !