Tuesday 12 June 2012


कांच पार 


दिल्ली है !

मै कार के भीतर हूँ 
खिड़की का कांच चढ़ा है 
बाहर भीख मांगती एक माँ है 
अपने बच्चे को गोद में लिए 
बच्चा फटी आँखों से मुझे देख रहा है
और माँ 
पथराई हुई उम्मीद से I


दिन हुए दिल्ली में 
अब मै खिलंदड़ा हो गया हूँ...
इन्हें देख छोभ में आने, लजाने 
आँखे न मिला पाने से 
आगे निकल गया हूँ...

अब तो इन्हें देख 
मोबाईल के टू मेगा पिक्सल कैमरे से 
उतारने लगता हूँ
माँ-बेटे का फोटू !

पथराई उम्मीद का फोटू
फटी आँखों का फोटू
अपनी गैरत का फोटू
अपनी आत्मा का फोटू

अपनी इन निजी तस्वीरों के सहारे 
टटोलता हूँ अपने देश की तस्वीर
और ऐसा करते हुए 
खुद को
देश के निर्माताओं में  
शामिल न करने की
सदाशयता के चक्कर 
में नहीं पड़ता I


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